चुलबुल चिड़िया
इक थी नन्ही सी प्यारी सी ,
नटखट-चुलबुल चिड़िया।
घर -आंगन में फुदक-फुदक कर ,
करती ता-ता थैया।
तिनका-तिनका चुन कर लाती ,
फिर घोसला बनाती।
अपने पंखों को फहराकर ,
अटखेलियां दिखाती।
मेरे घर के चौखट पर वो ,
गीत सुनाती बढिया।
इक थी नन्ही सी प्यारी सी ,
नटखट-चुलबुल चिड़िया।
सुनती नहीं ज़रा भी मेरी ,
अपने मन की करती।
बार बार कमरे में आती ,
फुदक फुदक मन हरती।
छोटइ -छोटे पंखों वाली ,
प्यारी सी गौरैया।
इक थी नन्ही सी प्यारी सी ,
नटखट-चुलबुल चिड़िया।
तिनका ढेर कहाँ से लाती ,
सोच के थे हैरान।
दादा जी तो उस चड़िया से ,
रहते थे परेशान।
उसके वजह से बंद रखते ,
वो दरवाजे खिड़कियाँ।
इक थी नन्ही सी प्यारी सी ,
नटखट-चुलबुल चिड़िया।
तभी अचानक बंद हो गया ,
उसका आना जाना।
तब मैंने मम्मी से पूछा ,
इसका राज बताना।
कहाँ गयी वो किधर गई वो ,
गई कौन सी दुनियाँ।
इक थी नन्ही सी प्यारी सी ,
नटखट-चुलबुल चिड़िया।
माँ गुमसुम सी खोई -खोई,
कुछ पल नभ को देखी।
फिर धीरे धीरे से बोली ,
कोई बात अनोखी।
विकट स्वार्थ भरा मनुज है ,
सुन लो मेरी गुड़िया।
इक थी नन्ही सी प्यारी सी ,
नटखट-चुलबुल चिड़िया।
मनुष्यों ने प्रदूषण नामक ,
बनाया इक दरिंदा।
जिसने छीना मुझसे मेरा ,
वो मासूम परिंदा।
घुट-घुटकर दम तोड़ दिया वो,
छोड़ गई ये गलियां।
इक थी नन्ही सी प्यारी सी ,
नटखट-चुलबुल चिड़िया।
इक थी नन्ही सी प्यारी सी ,
नटखट-चुलबुल चिड़िया।
घर -आंगन में फुदक-फुदक कर,
करती ता-ता थैया।
वेधा सिंह