*चुप रहने की आदत है*
चुप रहने की आदत है
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गम सहने की आदत है,
चुप रहने की आदत है।
लब को कैसे मैं रोकूँ,
कुछ कहने की आदत है।
आँखों में झलके पानी,
अश्रु बहने की आदत है।
साथी मिलता ना राहों में
यूँ चलने की आदत है।
कोई कुछ भी ना कहता
बस डरने की आदत है।
मन में न चाहत जीने की,
अब मरने की आदत है।
जीते जी हारा मनसीरत,
झट हरने की आदत है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)