चुप रहना भी तो एक हल है।
चुप रहना भी तो एक हल है।
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अक्षुण्ण हों संबंध हमारे,
और सङ्ग अपनों का श्रेयस्कर।
उर्जा नवल पंथ गढ़ने की
जीवन में सब कुछ हो यशकर।
हृदय किसी का दुखी न हम से
इसका भी अपना एक फल है।
चुप रहना भी तो एक हल है।।
परिवारों में खटपट होना
वाग्जाल इसका परिचायक।
खण्ड-खण्ड संबंध जो कर दे
शब्द वहीं निंदा के लायक।
शब्दों से अनुषंग बंधे हैं
और समाहित इसमें छल है।
चुप रहना भी तो एक हल है।।
सगे पराये हो जाते हैं
शब्दों की महिमा है न्यारी।
यहीं शब्द मधुरस बरसाते
कहीं शब्द अभिगम पे भारी।
मोल-तोल कर बोला जाये
बोल सुखद वह गंगाजल है।
चुप रहना भी तो एक हल है।।
बात बिगड़ने जब लग जाये
मौन साध लेना ही हितकर।
परम आवश्यक हो तब बोलें
किन्तु बोल वहीं जो शीतकर।
मधुर नाद पहिचान भवन की,
निश्चय ही वह सुखद निलय है।
चुप रहना भी तो एक हल है।।
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’ (नादान)
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार