चुनाव में बढ़ता धनबल प्रयोग (चुनौतियां एवं समाधान)
? आलेख (निबन्ध)?
? चुनाव में बढ़ता धनबल प्रयोग ?
?? (चुनौतियां एवं समाधान)??
लेखक – विनय कुमार करुणे✍?✍?
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भारत एक लोकतांत्रिक राष्ट्र है । एक लोकतांत्रिक राष्ट्र में चुनाव का महत्व और भी बढ़ जाता है, क्योंकि चुनाव लोकतांत्रिक शासन का आधार है। स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष चुनाव व्यवस्था लोकतंत्र को स्थायित्व प्रदान करती है। लोकतंत्र में जनता ही सत्ताधारी होती है। उसकी अनुमति से ही शासन होता है। लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा शासन, प्रमाणिक मानी जाती है ।।
वर्तमान में हमारे देश में चुनाव प्रकिया बहुत ही गम्भीर परिस्थिति से गुजर रहा है।जब भी चुनाव की बात होती है तो यह बात जेहन में उभरती है, कि वर्तमान निर्वाचन प्रक्रिया में एवं राजनीतिक व्यवस्था में धनबल और बाहुबल का वर्चस्व काफी बढ़ गया है। बिना धनबल प्रयोग के चुनाव असम्भव सा लगने लगा है। एक दौर वह था जब राजनीति को सेवा का जरिया माना जाता था, और चुनाव में वही लोग भाग लेते थे जिनका एक सामाजिक जीवन होता था। लेकिन आज ऐसा नही है, आज ईमानदार और सेवा करने वाले लोग चुनाव नहीं लड़ते हैं, वे राजनीति की दलदल में फसना नही चाहते है। आज सियासत की सवारी कसने वालों में दागी एवं अपराधी आगे रहते है। इसका परिणाम यह होता है कि धनबल एवं बाहुबल के प्रयोग से अपराधी लोग सत्ता में आ जाते है एवं सत्ता का दुरुपयोग करते है। दुखद बात तो यह है कि इन अपराधियों को टिकट दिलाने हर प्रचलित दले सामने आ जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि धनबल के प्रयोग से अपराधी लोग नेता बन जाते है एवं ईमानदार और सेवाभाव रखने वाले स्वभिमानी लोग पीछे रह जाते है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि ईमानदार लोग राजनीति की राह में आने से हायतौबा करने लगे हैं।।
राजनीति में पहले चुनाव लड़ने वाले नेता अपराधियों को मजबूत हथियार की तरह उपयोग करते थे। अब हालात ऐसा है कि अब सरकार किसी भी दल की हो उसमें धनबल का प्रयोग जोरोशोर के साथ होता है, और धन के प्रयोग से कोई न कोई अपराधी मंत्री बन जाता है, जो हमारे एवं राष्ट्र के लिए घातक साबित होता है,क्योकि वह जितना धन चुनाव में खर्च करता है उससे कहीं ज्यादा चुनाव जीतने के बाद वसूल लेता है।।
चुनावों में धनबल का प्रयोग कुछ दशकों में बढ़ा है, देश की बदहाली म अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, जो लोग चुनाव जीतने के लिए इतना अधिक खर्च कर सकते है तो वे जितने के बाद क्या करेंगे, पहले अपनी जेब को भरेंगे । और मुख्य बात तो यह है कि यह सब पैसा आता कहा से है? कौन देता है इतने रुपये? कई कम्पनियां है जो इन सभी चुनावी दलों को पैसे देती है, चंदे के रूप में। चन्दा के नाम पर यदि किसी बड़ी कम्पनी ने दी है तो वह नीतियों में हेरफेर करवा लेती है। लगभर सभी चुनावी दलें है जो चन्दा के नाम पर भारी भरकम रकम कम्पनियों से लेती है, एवं उन पैसों से जनता में एवं अपने चुनाव के प्रचार प्रसार में खर्च करती है।।
वर्तमान की राजनीति में धनबल का प्रयोग चुनाव में बड़ी चुनौती है। सभी दलें पैसे के दम पर चुनाव जीतना चाहते हैं। कोई भी ईमानदारी और सेवाभाव के साथ चुनाव नही लड़ना चाहते है। राजनीति के खिलाड़ी सत्ता के दौड़ में इतने व्यस्त है कि उनके लिए विकास, जनसेवा, राष्ट्र निर्माण की बात करना व्यर्थ हो गया है। सभी पार्टियां जनता को गुमराह करती नजर आती है। सभी पार्टियां नोट के बदले वोट चाहती है। राजनीति अब एक व्यवसाय बन गई है। सभी जीवन मूल्य बिखर गए है धन तथा व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए सत्ता का अर्जन सर्वोच्च लक्ष्य बन गया है।।
एक प्रत्याशी का चुनाव में हुए खर्चों को जब देखते है तो बड़ा चौकाने वाला होता है। चुनावों में पार्टियां करोड़ों रुपए खर्च करती है, लेकिन उसका हिसाब किताब नही होता है। जाहिर सी बात है जो करोड़ों रुपए खर्च करेगा, वह चुनाव जीतने के बाद उसकी भरपाई तो वह शासन के पैसों से ही करेगा। अब सवाल यह है कि समस्या गम्भीर है तो इसका समाधान ढूंढने की कोशिश क्यो नही किया जा रहा है। क्योंकि उनको इसमें अपनी ही हानि दिखाई देती है।।
राजनीति में बढ़ रहे धनबल के प्रयोग से गरीबों के लिए चुनाव प्रक्रिया में भाग लेने के अवसर छूट रहे है। चुनाव में बढ़ते धन के इस्तेमाल का जनप्रतिनिधत्व पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ रहा है। इससे निबटने के लिए चुनाव व्यवस्था में सुधार अतिआवश्यक हो गया है।।
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? समाधान :-?
चुनाव प्रक्रिया में हो रहे धनबल प्रयोग को रोकना अतिआवश्यक हो गया है, इससे फिजूलखर्ची तो रुकेगी ही साथ साथ ईमानदार, गरीब,स्वभिमानी,सेवाभाव वाले लोग भी चुनाव में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेंगे इससे राष्ट्र को लाभ होगा। चुनाव में हो रहे फिजूलखर्ची को रोकने हेतु अथवा कम करने हेतु बहुत से सुधार किये गए है लेकिन उसमें और भी सुधार की आवश्यकता है।।
राजनीतिक दलों द्वारा किया जाने वाला निजी संग्रहण पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए, उसे सार्वजनिक कर देना चाहिए।
धनबल के प्रयोग की समस्या बहुत ही विकट समस्या है इस समस्या का हल इस तरह से हो सकता है कि पार्टियों को मिलने वाले स्त्रोत को ही बंद कर देना चाहिए, उस पर ठोस नियंत्रण हो ।
राजनीतिक दलों कोमिलने वाले चंदे एवं धन से सम्बंधित कानून को सशक्त बनाया जाना चाहिए, जिससे कालेधन एवं वोटरों को लुभाने के गलत तरीकों पर लगाम लगाया जा सके।
राजनीतिक दलों को अपने आय व्यय का ब्यौरा फॉर्म 24-A में भरकर देना पड़ता है, किंतु अब सियासी दलें इसे भरने से कतराते हैं, की कही उनकी कलई न खुल जाए। कई राजनीतिक पार्टियां वर्षों से यह फॉर्म नही भरते हैं।इस नियम को अधिक कड़ाई के साथ लागू किया जाना चाहिए।।
✍? विनय कुमार करुणे✍?✍?