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10 Dec 2021 · 1 min read

चिन्ता

मनहरण घनाक्षरी

चिन्ता
चिन्ता चिता के समान,
निर्धन या धनवान,
बसती हृदय जब ,
राख कर जाती है ।

अनल लगाती‌ हिय,
नित तड़पाती जिया,
तिल -तिल मारती है,
जान हर जाती हैं।

सुख-दुख चैन छूटे,
रातों की नींद लूटे,
व्याधियों का घर बने,
भूखे मार देती है ।

मुखड़े की कांति जाती,
ह्रदय की शान्ती जाती,
दिन -रैन एक लगे,
सुध खो जाती है ।

ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर (हि० प्र०)

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