चिन्ता
मनहरण घनाक्षरी
चिन्ता
चिन्ता चिता के समान,
निर्धन या धनवान,
बसती हृदय जब ,
राख कर जाती है ।
अनल लगाती हिय,
नित तड़पाती जिया,
तिल -तिल मारती है,
जान हर जाती हैं।
सुख-दुख चैन छूटे,
रातों की नींद लूटे,
व्याधियों का घर बने,
भूखे मार देती है ।
मुखड़े की कांति जाती,
ह्रदय की शान्ती जाती,
दिन -रैन एक लगे,
सुध खो जाती है ।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर (हि० प्र०)