चित्रलेखा
क्रमशः……….
चारों तरफ बड़े-बड़े घास थे, कमर के बराबर बिल्कुल एक दूसरे में जकड़ी हुई, जिसमें चलना बहुत ही मुश्किल हो रहा था ।बहुत कठिनाई से आगे बढ़ रहे थे, शरीर में घासे लिपट जा रही थी और रास्ता रोक रही थी, धूप बहुत तेज हुई थी सूर्य बिल्कुल सर पर थे आकाश में एक भी बादल नहीं थे गर्मी बहुत ही तेज थी पूरा शरीर पसीने से तरबतर हो रहा था।
भूख और प्यास भी बहुत ही जोरो की लगी थी ।लेकिन जहां पर मैं था उसके चारों तरफ दूर-दूर तक कोई बस्ती दिखाई नहीं दे रही थी , बहुत मुश्किल में फंसा हुआ था समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें ,फिर भी हिम्मत नहीं हारा और घासो के बीच से आगे बढ़ता रहा ।
कुछ ही दूर आगे बढ़ा था कि अचानक हमारे कानों में किसी के बातें करने की आवाज सुनाई पड़ी। मैं चौकन्ना होकर आवाज को सुनने लगा कि,आवाज कहां से आ रही है, आवाज का पीछा करते हुए जब मैं कुछ दूर पहुंचा तो देखता हूं वहां पर छोटे- छोटे तालाब थे जिसमें पानी बहुत ही कम था और 4से 5 लोग तालाब में शायद मछली पकड़ रहे थे। मैं उनको देखा तो ,आश्चर्य में पड़ गया क्योंकि इन सब का कद- काठी बहुत ही छोटा था सामान्य आदमी की अपेक्षा थोड़ा छोटे-छोटे थे ,सर पर सफेद पगड़ी बांधे हुए थे तथा कमर में भी सफेद कपड़े पहने थे, शरीर का रंग सांवला था । वह आपस में बातें कर रहे थे ,और मछली भी पकड़ रहे थे ।
मैं वही किनारे पर बैठकर उन लोगों को देखने लगा, वह हमें भी देखें लेकिन उनके ऊपर कोई असर नहीं पड़ा वह एक बार देख कर फिर अपने काम में लीन हो गए मैं आश्चर्य में पड़ गया क्योंकि हमारा कद काठी इन लोगों से बहुत बड़ा था ।और मैं उन लोगों के लिए अजनबी था लेकिन वे हमें आश्चर्य से नहीं देखे, अपने काम में लगे रहे, मैं उनसे बात करना चाहा लेकिन बात नहीं हो पाई ।वे सर उठा कर हमें एक बार देख लेते और कोई जवाब नहीं देते और अपने काम में लग जाते ।कुछ भी हो हमें थोड़ी सी राहत मिली मैंने सोचा चलो बात नहीं करते हैं तो क्या हुआ, इनका कहीं ना कहीं घर होगा किसी बस्ती में ।जब मछली पकड़ कर अपने घर जाएंगे तो मैं भी ,इनके पिछे -पिछे बस्ती में जाऊंगा, शायद वहां कोई हमारी मदद करें।
मैं जिस मंजिल की तलाश में निकला था वह हमें अभी तक नहीं पता था, बस इतना जानता हूं कि वह उसी दिशा में है ,और ऐसा लगता है मानो कोई बार बार बहुत ही वेदना से हमें बुला रहा हो और मैं परेशान हो जाता था । वे मछली पकड़ते रहे और मैं वही किनारे पर बैठ गया ,भूख- प्यास भी बहुत जोरों की लगी थी और रास्ते का थकान भी थी बैठे-बैठे पता नहीं कब आंख लग गई ।जब नींद खुली तो मैं बहुत ही संकट में पड़ गया ,क्योंकि वह लोग वहां से जा चुके थे ,मैं तुरंत खड़ा होकर इधर-उधर देखने लगा घासों के बीच से होकर वे लोग जिधर गए थे कुछ निशान बन गए थे, मैं उसी दिशा में तेजी से जाने लगा ।तभी वे लोग कुछ दूर जाते हुए दिखाई दिए ,मैं उनके पीछे-पीछे जाने लगा चलते-चलते बहुत समय हो गया सूर्य भी अब जो सर पर थे वे अस्त होने के लिए नीचे आ गए कुछ ही देर में रात होने वाली थी। मन बहुत अधीर हो रहा था मैं उनके पीछे -पीछे जा रहा था। तभी कुछ दूर एक पहाड़ नूमा टिला दिखाई दिया , बाहर से देखने में पहाड़ जैसा दिख रहा था लेकिन शायद पहाड़ के अंदर काटकर घर बनाए गए थे, गुफा नूमा मैंने सोचा शायद आ गयी उनकी बस्ती ।
अभी मैं बस्ती से बहुत दूर था तभी वे लोग वहां पहुंच गए और जब मैं बस्ती के नजदीक आया तब तक वह लोग अंदर जा चुके थे गुफा के अंदर जाने का कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था। मैं बहुत निराश हुआ कि अब मैं क्या करूं, बस्ती से कुछ दूर एक पेड़ था मैंने देखा कि वहां के पेड़ भी बहुत छोटे-छोटे थे मैं एक पेड़ के नीचे बैठकर कुछ सोचने लगा, तभी मैं देखता हूं पहाड़ की छत पर एक युवती जो अद्वितीय सुंदरी थी चार -पाँच युवतीयो के साथ में टहल रही थी ।वह बहुत ही सुंदर तथा रंग बिरंगे कपड़े पहने हुए थे तथा आश्चर्य की बात यह थी उनकी लंबाई मर्दों की अपेक्षा बड़ी थी।जब मैं उनको देखा तो देखता ही रह गया ।यह लोग भी आश्चर्यचकित हो कर देख रहे थे ।मैं उनको इशारे से अपने पास बुलाया तो वे आपस में कुछ बातें किये और छत से नीचे उतर कर हमारी ओर आने लगे।
……….क्रमश: