चितायें जल रही हैं
श्रद्धांजलि(विधाता मुक्तक)
चिताएं जल रही हैं वेदना के स्वर सुनाती हैं।
धधकती राख है प्रतिवेदना के स्वर सुनाती हैं।
सदा जीवन कहें भंगुर पलों की आत्मियता को।
सुलगती लकड़ियाँ संवेदना के स्वर सुनाती हैं।
बिलखते मीत कहते हैं चले आओ चले आओ।
छलकते नेत्र कहते हैं पुराने दृश्य दिखलाओ।
समय की गति बदलती है ग्रहों के ही इशारे से।
परखना क्यों पड़ा तुम को हमें तुम ये न बतलाओ।
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
वरिष्ठ परामर्श दाता, प्रभारी रक्त कोष
जिला चिकित्सालय सीतापुर।
मौलिक रचना