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27 Nov 2022 · 1 min read

*चिड़िया बोली (बाल कविता)*

चिड़िया बोली (बाल कविता)
■■■■■■■■■■■■■■■
एक बार हाथी ने
जंगल में यह रखा विचार
नियम बने सब खाएँ हर दिन
गिन कर गन्ने चार

एक नई आफत यह आती
चिड़िया ने जब भाँपी
अपनी कद – काठी को देखा
और जोर से काँपी

बोली “टूँग-टूँग कर ही
मैं तो खाना खाऊंगी
ज्यादा मैंने अगर खा लिया
मोटी हो जाऊंगी

मैं दाने दो-चार ठीक ही
दिन-भर में खाती हूँ
हल्की – फुल्की हूँ इस कारण
ही तो उड़ पाती हूँ
■■■■■■■■■■■■■■■■■
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

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