चिट्ठी नहीं आती
दरवाजे पर लगी
बूढ़ी आँख
उस वक्त अनायास ही
जाने क्यों
हो जाती है नम
जब लौट जाता है
डाकिया
थमा कर कुछ अखबार
कुछ किताबें
कुछ पत्रिकाएँ
और कुछ सरकारी चिट्ठियाँ
कभी-कभी
वह दे जाता है
कोई हल्का-फुल्का मनीआर्डर भी
लेकिन
वह तो होती है
मात्र डाक
नहीं होती उस डाक में
कोई चिट्ठी
नहीं होती कोई ऐसी चिट्ठी
जो सालों पहले
लिखा करता था
कोई परदेस गया भाई
राखी से पहले
अपनी बहन को
नौकरी पर गया पति
अपनी वियोगिनी पत्नी को
बूढ़ी माँ
लिखवाती थी
गाँव के किसी लड़के से
अपनी दूर ब्याही
बेटी को
बेटी लिखवाती थी
नैहर से
बुलावा भेजने के लिए
माँ को
दो सहेलियाँ लिखती थीं
अपने दुःख-सुख
हाँ!
उन चिट्ठियों में होते थे
मन के भाव
अपने दुख-सुख
जो अनायास सहे जाते
और
अपनो से कहे जाते
परन्तु
अब नहीं आती कोई चिट्ठी
किसी भी दरवाजे पर
आती है
तो महज डाक
हाँ!
अब डाक आती है
चिट्ठी नहीं आती