*चिंता चिता समान है*
चिंता चिता समान है
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चिंता चिता समान है,
गम से भरी दुकान है।
जब हो दुखी शरीर से,
नाकाम भी पुराण है।
शकलें दिखे उदास सी,
वो घर नहीं मकान है।
थोड़ा नहीं विराम हो,
मिलती बड़ी थकान है।
छलनी हुआ है तीर से,
खाली पड़ा कमान है।
मनसीरत रहे ढूंढता,
जो आखिरी निशान है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)