चिंगारी
गहन तिमिर में,
झिलमिलाती वह नंही चिनगारी,
बहुत कठिन है इसे समझना,
येसंकेत हैभीषण जवाला की
या किसी झोपड़ी काआशादीप ।
सृष्टि बनी जादूगर की झोली
मानव ने पहना चेहरे पर मुखौटा
दो पहलू का सिक्का बन गया
21वीं सदी का बिकसित इंसान
रोबोट बना कर भूल गया अपनी पहचान।
परमाणु को बारुद बनाया
तिनका भी बन गया अब संहारक
जब मानव खोज रहा था तिनके में जीवन।।
आह! बिबशता तेरी मानव
एक बार फिर हार गया तू
पता हमें है ये,
तू स्वीकार इसे नहीं कर सकता
सोचो तुम कभी मन शीतल कर
क्या बदल सका प़कृति का नियम तू,
सृष्टि, पालन फिर संहार का नियम
अब तक काट सका है तू
संहार फिर संहार केवल संहार के
साधन ढूढा़ करता है तू
अब खत्म करो असत्रों की होड़
बाँटो दुनिया में मानवता का संदेश
हो लक्ष्य यही हर मानव का
करे मनुष्य, मनुष्य से प्रेम।।
जय प्रकाश श्रीवास्तव पूनम