चाह और राह
******** चाह और राह (दोहे) ********
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1
प्रेम – प्रीत की चाह में,भूल गया है राह।
संध्या बीती दिन गया,निकली मुँह से आह।।
2
मोह – लोभ मन में भरा, माया की है चाह।
बाकी जाएं भाड़ में, कौन करे परवाह।।
3
लालच में मन बांवरा,भटक गया है राह।
जठर सदा भरता रहे, बढ़ती जाती चाह।।
4
मनसीरत मन मार के, चलता उल्टी राह।
जीवन खाली है पड़ा,नहीं बन सका शाह।।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (दोहावली)