‘चाहत’
ऐ चाहत प्रणाम?!
एक पाती तेरे नाम।
तू बसती है हर दिल में,
आ जाए जब मुश्किल में।
फिर भी न टूटती है,
न छूटती है न रूठती है।
तेरी साँसे थकती नहीं,
हमेशा ऊर्ध्वगामी रहती हैं,
कभी उतराव उतरती नहीं।
एक मंजिल मिल भी गई
पर तुझे विश्राम कहाँ?
दूसरी पाने निकल गई।
जीवन के अंतिम क्षण तक
ए चाहत तू संग रहती है।
कह न भी पाए पर
मन के भीतर दबी,
फिर भी जिंदा रहती है।
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