चाहत से जो आरंभ हुआ, वो प्रेम अनूठा खेल,
चाहत से जो आरंभ हुआ, वो प्रेम अनूठा खेल,
दिल ने मांगा साथ सदा, पर त्याग बना सच्चा मेल।।
पहले पाने की प्यास जगी, हर पल की थी दरकार,
पर अंत में त्याग ही ठहरा, प्रेम का असली आधार।।
चाहा जिसे हर सांस में, वो दिल में बसा हुआ,
पर छोड़ने की शक्ति ही, प्रेम को गहरा बना हुआ।।
प्रेम कोई व्यापार नहीं, ना ही ये कोई सौदा है,
त्याग से बनता है अमर, ये जीवन का सूत्र साधा है।।
जो त्याग सके अपनी खुशी, प्रेम उसका सच्चा है,
जो खुद को मिटा दे इसके लिए, वही प्रेम का रक्षक है।।
चाहत से शुरू हुआ जो, त्याग पे आकर रुका,
सच प्रेम वही जो, अंत में खुद को भी भूला।
ऐसा ही होता प्रेम सदा, चाहना और फिर बिसारना,
त्याग ही इसकी पहचान है, इसे जीवन में उतारना।।