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25 Jul 2021 · 1 min read

प्रेम जगा कर…(मत्तगयंद सवैया छंद)

प्रेम जगा कर भूल गए तबसे हम कष्ट हजार सहे हैं,
आशिक़ या भँवरा, पगला हमको जग के सब लोग कहे हैं,
सागर सी गहरी अँखिया, जिनसे हम नीर समान बहे हैं,
नैन वही अब देखन को दिन-रैन तुम्हें हम ढूँढ रहे हैं।

– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 24/07/2021

Language: Hindi
270 Views
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