चाहता हूं
मोहब्बत की राहें कठिन ही सही
उम्र भर साथ तेरे चलना चाहता हूं
बचपन की यादें भले विस्मृत ही सही
उन्हीं यादों के सहारे जीना चाहता हूं
बिताए साथ तेरे भले चंद ही पल मैंने
उन पलों की छांव में सोना चाहता हूं
वे निगाहें भले क्षणिक ही मिलीं होंगी
निगाहे नाज ए यार में जीना चाहता हूं
उस गली में भले आज वो रौनक नहीं
जिस गली के किस्से सुनाना चाहता हूं
वो किताब जिसे भले ही वो भूल गई
लगाकर सीने से अपने मैं रोना चाहता हूं
दौर बारिश का भले ही मद्धम रहा होगा
तेरी जुल्फों में थमी बूंदे हटाना चाहता हूं
संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश