चाहता हूं मैं
कि फिर यादों की बस्ती में
जाना चाहता हूं मैं
बहुत भटका हूं अब लेकिन
ठिकाना चाहता हूं मैं
कभी हंसने का वादा था किया
मैंने मुकद्दर से
मरकर भी वही वादा
निभाना चाहता हूं मैं
उसको सिर्फ यही एक बात
बताना चाहता हूं मैं
अपनी बातें अपने एहसास
जताना चाहता हूं मैं
कि मेरी नींद, मेरी चैन
जिस सूरत ने लूटी है
उसे ख्वाबों में जाकर के
सताना चाहता हूं मैं
विक्रम कुमार