चारदीवारी
“चारदीवारी”
“ तुम लोग रोज रोज इतनी देर तक कहाँ गायब रहते हो शाम के गए रात ९ बजे घर में घुस रहे हो ? घर की याद नहीं आती तुम लोगों को ? रमेश तुम्ही समझाओ अपने घरवालों को, मैं तो समझा समझा कर थक गयी ” रामकिशन जी और सुशीला जी को खरीखोटी सुनाते हुए उनकी बहु ने कहा।
रमेश क्या कहता उनसे उसकी हालत तो दो पाटों के बीच फँसे गेहूं जैसी थी, उसने नजरे उठाकर माता पिता की तरफ देखा |
इससे पहले कि रमेश कुछ कहता पिताजी ने ही कहा, “ बहु घर की ही तो याद आती है मगर वहां का तो सब खेत खलिहान और हवेली बेचकर तुम्हारी इस ३ कमरों की कोठरी में लगा दिया | यहाँ चारदीवारी के सिवा है ही क्या ? सिर्फ चार ईंटें जोड़ लेने से घर नहीं बनता, परिवार के लोगों में आपसी समझ, प्यार दुलार और सम्मान से घर बनता है | और बहु क्या हम सिर्फ रमेश के घरवाले हैं ???”
“सन्दीप कुमार”
मौलिक व अप्रकाशित
३०.०८.२०१६