चार वीर सिपाही
हे गुरु गोविंद सिंह के लाल,
तुमने कर दिया खूब कमाल ।
प्राण दे दिए अपने हंसकर,
पर नही झुकाया भाल ।।
वजीर खान ने जाल बिछाया,
रसोइया ने ये भेद बताया ।
अपनो की गद्दारी के कारण,
अब ये दिन सामने आया ।।
चार पुत्र गुरु गोविंद सिंह के,
दो चमकौर युद्ध में खोए थे ।
वीरों का काम तो लड़ना है,
वो वीरगति की नींद में सोए थे ।।
नौ वर्ष के थे,वीर जोरावर,
छह वर्ष के फतेह सिंह बताए थे ।
दादी गुजरी को बन्दी बनाकर,
वो सब सारहिंद में लाए थे ।।
कितनी यातनाएं सही मगर,
वो सच्चे गुरु अनुराइ थे ।
हर पीड़ा को स्वीकार किया,
गुरुवाणी हर पल गाए थे ।।
बोल के वजीर खान फिर,
उन दोनो को समझाते हैं,
सर झुका दो मेरे कदमों में,
हम मुक्त तुम्हें करवाते हैं ।।
बोले फिर गुरु के प्यारे,
हम बिल्कुल ना डरते है ।
मृत्यु तो सिंगार है योद्धा का,
इसे कायर ग्रहण ना करते हैं ।।
ये सर झुकता गुरु के सम्मुख,
ये और न कहीं झुकता है ।
ये पग है अभिमान हमारा,
इसके लिए ह्रदय धड़कता है ।।
जब सारी कोशिश विफल हुई,
तब वजीर खान खिसिआया था।
जिंदा चुनवा दो इन दोनो को
ये अति निर्मम आदेश सुनाया था ।।
दीवार खड़ी होती जाती,
पर दोनो भय ना खाते है ।
गुरु गोबिंद सिंह के प्यारे,
गुरु वाणी गाए जाते हैं ।।
ऐसे भी वीर हुए धरा पर,
क्यूं इनको भुलाए जाते है ।
ऐसे तो वीर धरा पर,
सदियों के बाद ही आते हैं ।।
दोनो के दोनो निर्भीक,
दोनो ही त्याग के सानी ।
रखा था मान देश का,
दे कर के अपनी कुर्बानी ।।
आओ तुमको अंबर सुनाए,
त्याग की अमिट कहानी ।
सुनकर के जिसे नैनो में,
भर आयेगा तुम्हारे पानी ।।
कोटि नमन करते आपको,
गुरु नानक जी अवतारी ।
धन्य धन्य गुरु गोविंद सिंह,
धन्य धन्य है कृपाण तुम्हारी ।।
धन्य धन्य है तुम्हारे बालक,
जिसने कभी हार ना मानी।।
शीश नही झुकाया जिसने,
हंस कर के मृत्यु स्वीकारी ।।