चार मुक्तक
मुक्तक
ऐसी कोई चाह नहीं है
जिसकी कोई राह नहीं है
शिलालेख पर लिखने वाले
तेरी कोई थाह नहीं है।।
2
मर्यादा ने चादर छोड़ी
हमने भी तो कसमें तोड़ी
सूख गए आँखों से आंसू
सरे राह जो बांह मरोड़ी।।
3
क्या कहना अब सुनना यारों
क्या लिखना अब गुनना यारों
हर पोथी तो बंद पड़ी है
अलमारी में गिनना यारों।।
4
क्या देवें अब अवध दुहाई
कहो, मंथरा कैसे आईं ?
हम सब हैं वचनों के मारे
यूं ही सीता नहीं समाई।।
सूर्यकांत