चार मुक्तक
मै तुमको जीने की कला एकसिखलाता हूँ।
अकिंचन हो जाने की राह तुम्हे बतलाता हूँ।
लेकिन तुम पड़ो नही इन बातो में सुनलो।
क्यों में लाखो की कारो में आता जाता हूँ।
***** फ्री फ्री कवि शंकर
हमरा क्या है भैया हम तो एक फकीर है।
करते योग कराते भी यही एक तकदीर है।
वो बात अलग है हो गई अरबो रूपयों में .
योग के बलबूते विरासत और जागीर है।
***** वावा आमदेव जी
हमको मत समझो यारा कि हम ढोंगी है।
हम तो साफ बोलने वाले एक सीधे योगी है।
अब राजनीति ही खुद चलकर आये तो क्या
मत समझो हम कोई राजनीती के जोगी है।
+++++ शाहित्यनाथ योगी
क्या होली क्या दिवाली सुनो जनाबे आली।
किसे छोड़ दे किसे पकडले मेरी बातनिराली।
दलबदलू बोलो या हस लेने की आदत वाला।
आ गया समझ में तो कहता हूँ ठोको ताली।
*** हसनोत सिंह बुद्दू
बीबी की कोई रोक नही है इसलिए तो हीरो है।
करते अपनी सोच सभीजैसे शासक नीरो है।
लेकिन एक बात समझ नही आती क्यों कर।
बिन बीबी के भी पप्पू क्यों राजनीती में जीरो है।
**** एक चाय वाला