चार दोहे
मेरे जीवन में नहीं, कोई भी इक आस।
स्वाति बूँद मिले नहिं फिर, चातक बुझै न प्यास॥
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राह कोई सूझत नहिं, छानू पथ-पथ खाक।
जैसे बिना श्राद्ध दिवस, पूछै कोउ न काक॥
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जीवन गर है जानना, अपने भीतर झाँक।
फटे कपड़े विचार के, मन की सुईं से टाँक॥
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जितना घट माहिं उतरै, भेद सभी खुल जाय।
गहरे पानी पैठ के, मोती मानुष पाय॥
सोनू हंस