चार दिनों में खो गया, कैसा था वो प्यार
चार दिनों में खो गया, कैसा था वो प्यार
बात मानने को तभी , हुआ न दिल तैयार
कहते थे तुम ही कभी, रहते हो बेचैन
यादों में डूबे हुये, जागो सारी रैन
हमसे मिले बिना नहीं, आता तुम्हें करार
चार दिनों में खो गया, कैसा था वो प्यार
सात जन्म के साथ की, कसमें खाई साथ
मन्दिर में भगवान के, पकड़ा तुमने हाथ
जीत लिया विश्वास था, यही हमारी हार
चार दिनों में खो गया, कैसा था वो प्यार
फूल खिले थे बस जरा, ठंडी चली बयार
और तभी सच सामने, ले आया पतझार
और ढूंढते रह गये ,हम तो खिली बहार
चार दिनों में खो गया, कैसा था वो प्यार
19-05-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद