चार दिनों की जिंदगी है, यूँ हीं गुज़र के रह जानी है…!!
यहीं धूल, यहीं मिट्टी,
यहीं अपनी कहानी है,
यहीं पे जन्मे, यहीं पे फैले,
यहीं पे मिट के रह जानी है,
चार दिनों की जिंदगी है,
यूँ हीं गुज़र के रह जानी है…!!
कुछ दिनों तक.. नन्हें-कवले बालक,
कुछ दिनों की.. हट्टी-कट्टी जवानी है,
कुछ दिनों तक.. हम गिरते-पड़ते मानव,
कुछ दिनों में.. आत्मा भी निकल जानी है,
चार दिनों की जिंदगी है,
यूँ ही गुज़र के रह जानी है…!!
धर्म – जाति, और ये ऊंच -नींच,
भेद -भाव, और ये रंग -रूप,
अमीर -गरीब, और ये नफ़ा -मुनाफ़ा,
और किस चीज की ठाट-ग़ुमानी है,
सब कर्म का खेल है बन्दे,
इसी के साथ अपनी रूह भी
एक दिन.. इस ज़िस्म से निकल जानी है,
चार दिनों की जिंदगी है,
यूँ ही गुज़र के रह जानी है…!!
❤️ Love Ravi ❤️