चार त्रिकोण
जन्मांग में बारह भावो के चार त्रिकोण होते है और एक त्रिकोण तीन भावो से बंनता है लेकिन सभी चारो त्रिकोणों का अपना अपना महत्त्व है!!
1) धर्म त्रिकोण
2) अर्थ त्रिकोण
3) काम त्रिकोण
4) मोक्ष त्रिकोण (शास्त्रोक्त) ,, लेकिन दे-का-पा अनुसार बंधनो के त्याग
धर्म त्रिकोण!!
यह प्रथम, पंचम तथा नवम भाव से मिलकर बनता है यह हमें बताता है कि हमें यह जन्म क्यों मिला है ? यह बताता है कि हम पूर्व में क्या थे, अब हम इस जन्म में क्यों आये है और इस जन्म में हमें क्या करना है? यह हमारे इस जन्म के भाग्य एवं प्रारब्ध को दर्शाता है!!
लग्न हमारी कुंडली का सबसे मुख्य भाव है क्योंकि यह केंद्र भी है और त्रिकोण भी,, यह हमारे जीवन की धुरी है इससे हमें हमारा शरीर (अस्तित्व) का पता चलता है हम क्या सोचते हैं, कितना समर्थ है, कितनी बुद्धि है, कैसा बल है? इन सब बातों का पता लग्न से चलता है इस जन्म के उद्देश्य को पूरा करने में लग्न का बहुत महत्व है लग्न भाव क्षीण होगा तो हम अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में असहजता का अनुभव करेंगे!!
पंचम भाव उन गुणों या क्षमताओं को प्रदर्शित करता है जो हमें पूर्व जन्म के कर्मो के कारण मिली हैं यहाँ ये आवश्यक नहीं है कि हम इस भाव को केवल अच्छे कर्मों का फल मानें, यदि पूर्व जन्म के कर्म बुरे हैं तो इस जन्म में हमें विसंगतियां भी मिलती है.
नवम भाव भाग्य का होता है, क्योंकि भाग्य के कारण ही हम पाते हैं कि कम प्रयास में हमारे काम सुगमता पूर्वक हो जाते हैं इसी प्रकार नवम भाव दर्शाता है कि हमारे अंदर सही मार्ग पर चलने की कितनी समझ है, हमारे आदर्श कितने ऊँचे हैं हम कितने अंतर्ज्ञानी हैं, और हमारा भाग्य कितना सहयोगी है ??
अर्थ त्रिकोण!!
यह दूसरे, छठे और दसवें भाव से मिलकर बनता है जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निश्चित ही हमें धन अर्थात अर्थ की आवश्यकता होती है, तो यह त्रिकोण हमारे जीवन में इसी को प्रदर्शित करता है!!
दूसरा भाव जीवन में धन के स्त्रोत को दिखाता है यह उन सभी वस्तुओं को बताता है जो कि हमारे जीवन यापन के लिए महत्त्वपूर्ण हैं!!
छठा भाव इस बात का कारक है कि हम कितना अपने जीवन को व्यवस्थित रखते हैं, हम कितना सुलझे तरीके से कार्य को करते हैं हमारी आदतें, दैनिक जीवन की गुणवत्ता का पता छठे भाव से ही चलता है!!
इसी प्रकार दसवां भाव हमारे कर्मों को दिखाता है,जो कि हम समाज में करते हैं इसीलिए यह हमारा कार्यक्षेत्र का भाव कहलाता है क्योंकि धन का स्त्रोत कार्यक्षेत्र से ही होता है!!
काम त्रिकोण!!
यह त्रिकोण तीसरे,सातवें और ग्याहरवें भाव से मिलकर बना होता है धनोपार्जन करने के पश्चात हम इस धन का उपयोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए करते हैं यह त्रिकोण हमारे जीवन में उस प्रेरणा बल को दिखाता है जो हमें अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए प्रेरित करता है हमारे भीतर उन नए क्षेत्रों के प्रति जिज्ञासा जगाता है जिन्हें हम जानना चाहते हैं, जिनको हम भोगना चाहते हैं इस त्रिकोण के माध्यम से हम सांसारिक सुखों की ओर अग्रसर होते हैं!!
तीसरा भाव हमें वह हिम्मत और प्रेरणा देता है जो कि इच्छा पूर्ति के लिए आवश्यक होता है
सातवाँ भाव हमें कामेच्छा की ओर ले जाता है जिसे हम अपने जीवन साथी से प्राप्त करते हैं यह भाव हमें अन्य लोगों कि तरफ भी आकर्षित करता है, क्योंकि हम अपनी इच्छा दूसरों के माध्यम से ही पूरी करते हैं जैसे व्यापार और सामाजिक बंधन,, सामाजिक बंधनों के द्वारा हम अपने सुख दुःख का आदान प्रदान करते हैं!!
ग्यारहवां भाव हमें उन लक्ष्यों की तरफ ले जाता है जो हम अपने जीवन में निर्धारित करते हैं यह भाव मित्र देता है क्योंकि सच्चे मित्रों की सहायता से हम अपने लक्ष्यों या लाभ को आसानी से प्राप्त करते हैं अतः निजी लाभ हेतु यह भाव हमें संसार से जोड़ता है!!
मोक्ष त्रिकोण!!
यह चौथे, आठवें और बारहवें भाव से मिलकर बनता है मोक्ष का मतलब होता है बंधनों से छुटकारा,, इस त्रिकोण के माध्यम से हम सांसारिक मोह माया से ऊपर उठ कर वास्तविक सत्य को प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं!!
चौथा भाव बताता है कि यह सत्य बाहरी संसार में नहीं बल्कि हमारे अन्तः करण अर्थात मन में स्थित होता है!!
आठवाँ भाव मृत्यु (आयु का अंत) के रूप में हमें शरीर से मुक्त करने कि शक्ति रखता है!!
बारहवां भाव का शास्त्रोक्त रूप है कि कैसे हम मन (चौथा) और शरीर (आठवां) से मुक्त होकर आत्म ज्ञान की ओर अग्रसर होते हैं लेकिन दे-का-पा अनुसार जब हम किसी भी इच्छा के लिए कैसे व्यय करके शांति पाएंगे ये भाव ही बताता है !!