गंध गुणों की बिखरायें
हे जगत- नियंता यह वर दो ,
फूलों से कोमल मन पायें ।
परहित हो ध्येय सदा अपना,
पल पल इस जग को महकायें ।।
हम देवालय में वास करें ,
या शिखरों के ऊपर झूलें ,
लेकिन जो शोषित वंचित हैं ,
उनको भी कभी नहीं भूलें ,
हम प्यार लुटायें जीवन भर ,
सबका ही जीवन सरसायें ।
परहित हो ध्येय सदा अपना,
पल पल इस जग को महकायें ।।
हम शीत , धूप, बरसातों में ,
कांटों में कभी न घबरायें ,
अधरों पर मधु मुस्कान रहे
चाहे कैसे भी दिन आयें ,
सबको अपनापन बांट बांट ,
हम गंध गुणों की बिखरायें ।
परहित हो ध्येय सदा अपना,
पल पल इस जग को महकायें ।।
जीवन छोटा हो या कि बड़ा ,
उसका कुछ अर्थ नहीं होता ,
जो औरों को खुशियाँ बांटे,
वह जीवन व्यर्थ नहीं होता ,
व्यवहार हमारा याद रहे ,
हम भी कुछ ऐसा कर जायें ।
परहित हो ध्येय सदा अपना ,
पल पल इस जग को महकायें ।।