चार कदम चलने को मिल जाता है जमाना
चार कदम चलने को मिल जाता है जमाना
कौन मिलता है मुसाफिर जिंदगी भर के लिए
ना मिले मन तो अकेले रहना ही ठीक है
कई मुद्दे हैं जिंदगी के दर्दे सर के लिए !
कवि दीपक सरल
चार कदम चलने को मिल जाता है जमाना
कौन मिलता है मुसाफिर जिंदगी भर के लिए
ना मिले मन तो अकेले रहना ही ठीक है
कई मुद्दे हैं जिंदगी के दर्दे सर के लिए !
कवि दीपक सरल