चाय पार्टी
शालिनी आज सुबह से उठकर नहा धोकर तैयार हो गई थी और उसने आज ब्रांड न्यू साड़ी भी पहन रखी थी। सुबह से उसका साज श्रृंगार चल ही रहा था, आज उसने खुद को गहनों में लाद लिया था मानों आज उसे किसी फैशन शो में हिस्सा लेना हो।
शालिनी को ऐसे सजते संवरते देखकर उसकी 6 साल की मासूम बेटी आराध्या ने उसके पास आकर उसे पूछा।
आराध्या : मम्मा आज हम कहीं जा रहे हैं क्या….. या फिर आज कोई त्योहार है……
शालिनी : नहीं बेटा……..हम कहीं नहीं जा रहे …….और न ही आज कोई त्योहार है…….
आराध्या : तो फिर मम्मा…….आज आप इतना अच्छे से तैयार क्यों हो रहे हो…….मुझे भी बताओ ना……
शालिनी : बेटा……आज मेरी सहेलियों को मैने चाय पार्टी पर बुलाया है…….कुछ ही देर में वो सब आती ही होंगी……
आराध्या :(बड़ी मासूमियत से) लेकिन मम्मा…….अभी तो कामवाली दीदी की तबियत खराब है……..और वो काम में नहीं आ रही है……..तो फिर इतने सारे मेहमानों के लिए चाय पार्टी की व्यवस्था कैसे होगी…….
शालिनी : कितना सवाल करती है…….वो है न तेरी दादी……क्या वो मेरी सहेलियों के लिए चाय पार्टी का इंतजाम नहीं कर सकेंगी…….(थोड़ा झुंझलाकर बोली)
अपनी मम्मी के मुंह से ऐसा जवाब सुनकर मासूम आराध्या कुछ देर तक सोचती रही और उसने मन ही मन विचार किया कि उन्हें जब पहले से पता है कि कामवाली दीदी नहीं आ रही तो भी अपनी सहेलियों को बुलाना और खुद उनके साथ सज धजकर बैठना और उनके लिए चाय पार्टी की व्यवस्था दादी से करवाना क्या सही है।
आजकल बहुत से घरों में यह देखा जाता है कि बहुएं अपने साजो श्रृंगार में लगी रहती हैं और अपने मायके वालों को या सहेलियों को निमंत्रण देकर उनके स्वागत का इंतजाम अपने घर के बुजुर्गों से करवाकर उन्हें सबके सामने जलील करते हैं।
जिन मां बाप ने हजारों मुश्किलें झेलकर अपने बेटे का भविष्य संवारा हो और उसके लिए बहू चुनकर इस घर में लेकर आए थे उन्हीं के साथ ऐसा व्यवहार बहुत ही अनुचित है।
✍️ मुकेश कुमार सोनकर “सोनकर जी”
रायपुर, छत्तीसगढ़