चाची बुढ़िया अम्मा : बाल कविता
चाची बुढ़िया अम्मा : बाल कविता
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बुढ़िया अम्मा सज कर आईं
पाउडर खूब लगाकर
रचे हुए थे होंठ लाल
दो-दो पानों को खाकर
बोलीं बच्चों मुझे आज से
अम्मा नहीं बुलाना
अच्छा लगता है मुझको
तुमसे “चाची” कहलाना
बच्चे बोले उम्र नहीं
छुप सकती ,वही रहेगी
तुम अम्मा हो दुनिया तुमको
चाची नहीं कहेगी
हुई रुआँसी बूढ़ी अम्मा
खूब बैठ कर रोईं
फिर लिहाफ को ओढ़ा सिर तक
बड़ी देर तक सोईं
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रचयिता : रविप्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर