चाचाजान
ऐसे तो हमारे चाचा जी काफी जिंदादिल इंसान हैं, मगर जब से देश में अफजल जिंदाबाद के नारे सुने हैं तब से थोड़े भावुक रहते हैं भावुक हो भी क्यों ना क्योंकि आज तक वह किसी विश्वविद्यालय में पढ़ने नहीं गए.
क्योंकि उनकी पढ़ाई का कारवां कभी दसवीं से आगे नहीं बढ़ा, मगर उनकी समसामयिक बातें किसी अखबारी ,टीवी बुद्धिजीवी से कम नहीं है, यह सफर शुरू होती है, तकरीबन एक दशक पहले जब उन्हें उनके शहर के विश्वविद्यालय में जाने से पहले फर्जी डिग्री के मामले में स्थानीय पुलिस ने नकेल कसी थी, मामला कुछ यूं था हमारे होनहार चाचा जान किसी फर्जीवाड़े से फर्जी डिग्रियां ले रहे थे, मगर हमारे चाचा जान कच्चे खिलाड़ी निकले, फर्जी डिग्री के मामले में उन पर कार्यवाही हुई और उनकी दसवीं का अंक प्रमाण पत्र जब्त कर लिया गया. फिर क्या तब से उन्हें विश्वविद्यालयों से घृणा सी हो गई।
साल बदलते हैं और उनकी घृणा बलवती होती गई हर रोज नुक्कड़ पर चपसंडो के बीच चाय की चुस्कियां लेते हुए मुल्क की हालिया स्थिति पर उनके प्रवचन लोग को हर रोज चाय की टफरियो पर देखने को मिलते हैं,
हालिया मोदी लहर विश्वविद्यालय मे भारत विरोधी नारे और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में बवाल और भारत होंगे टुकड़े जैसी वारदातों से चाचा जान कुछ ज्यादा ही आहत दिखते हैं, विश्वविद्यालय में देश विरोधी इफ्तार पार्टियां देने वाले ऊदबिलाव पर कुछ शैतानी बिल्लियां कुछ ज्यादा ही परेशान है, कुछ का प्रवचन और शिक्षा का बाजार करने वाले बाजारु भेड़िए जो देश के युवाओं को बरगलाते हैं उन पर भी वह कड़ा रोष पेश करते हैं मगर चाचा जान सिर्फ कहने वाले एक वाचाल खिलाड़ी हैं,
जो शुतुरमुर्ग की तरह गर्दन उठा कर चलते हैं जो अपने कदमों के निशान भी नहीं देखते वो बातों-बातों में क्या बोल देते हैं.
चाचा अगर विश्वविद्यालय में इन विरोधियों पर अगर वह कुछ बोल भी दे अगर उन पर अंडे भी पढ़े तो कोई शक नहीं कि वह उन अंडों का आमलेट बना कर खा लेंगे.
वैसे तो चाचा जान का पूरा नाम भानु प्रताप शुक्ल है.
जो पूर्वांचल के ढिठाई वाले क्षेत्र से आते हैं, जिन में शर्म का पर्दा ही नहीं, अपितु शर्म का पर्दा भी उनकी शर्मिंदगी में शर्मा जाए, बातें तो उनकी आसमान के तारे तोड़ दे, मगर गांव की छिछोरी पंथी वह अव्वल दर्जे के हैं, कई मर्तबा इश्क फरमाने के चक्कर में पिट गए हैं.
हरकतें उनकी बादशाही है, हालांकि धूलासन के बाद भी
वह अपने को किसी क्रांतिकारी से कम नहीं समझते…
दिल में एक टिस रह गई वह कभी काँलेज का शक्ल ना देख पाया, सुबह की धमाकेदार शुरुआत किसी के खेतों से सब्जियां चुराकर , चाय की टफरी पर उल जुलूल बातें बनाकर चाय पीना, और छेड़छाड़ निर्गुण का इजात हाल फिलहाल में उन्होंने अपने में किया है.
अवधेश कुमार राय
ग्रेटर नोएडा उ.प्र