चांद टूट गया है
चांद जैसे टूट गया है, टुकड़ा कही पर छूट गया है।
आधुनिकता की होड़ में या फ़िर मानव से बचने की दौड़ में। डरी धरा की हालत देख माथे पर ले चिंता की रेख, सोचा होगा बचा लू ये एक टुकड़ा, मानव ने ब्रह्माण्ड है कर दिया संकरा। कहा छिपाऊ ये छोटा सा टुकड़ा ये जासूस बड़ा है तगड़ा।
मां को न इसने छोड़ा, अम्बर से लेकर पाताल निचोड़ा।
अब मामा चंदा की बारी, भांजे का मस्तिष्क हथौड़ा भारी।
सुनकर बाते मामाजी की यू गुस्साए सूरज काका,
पास कोई आकर दिखलाए, रोब अक्ल का मुझे दिखलाए, आधुनिकता का पाठ सिखलाए।
किया प्रकृति से इसने खिलवाड़,
तोड़ी मर्यादा की दीवार।
हाय हाय ये मानव करता,
गर्मी से जीता न मरता।
फ़िर भी प्रकृति से खिलवाड़ करता,
इतने पर भी नियति से न डरता।