चाँद मेरी चाँदनी को निहारता रहा –एक मुक्तक –आर के रस्तोगी
चाँद मेरी चाँदनी को निहारता रहा |
मै भी खड़ा खड़ा उसे निहारता रहा ||
मेरी चाँदनी को कोई नजर न लग जाये |
उसको नजर का टीका लगाता रहा ||
चन्द्रमा की चंचल किरण |
निहार रही थी मेरे तन को ||
बता रही है कितनी सुंदर हूँ |
सुना रही है मेरे सजन को ||
चाँदी की चलनी से जो देखा है चेहरा |
वही तो मेरे अरमानो का चेहरा ||
कही इसे चाँद की चाँदनी न चुरा ले |
इसलिए तो छिपाती हूँ अपने चाँद का चेहरा ||
आर के रस्तोगी
गुरुग्राम (हरियाणा)