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17 Oct 2019 · 1 min read

चाँद मेरी चाँदनी को निहारता रहा –एक मुक्तक –आर के रस्तोगी

चाँद मेरी चाँदनी को निहारता रहा |
मै भी खड़ा खड़ा उसे निहारता रहा ||
मेरी चाँदनी को कोई नजर न लग जाये |
उसको नजर का टीका लगाता रहा ||

चन्द्रमा की चंचल किरण |
निहार रही थी मेरे तन को ||
बता रही है कितनी सुंदर हूँ |
सुना रही है मेरे सजन को ||

चाँदी की चलनी से जो देखा है चेहरा |
वही तो मेरे अरमानो का चेहरा ||
कही इसे चाँद की चाँदनी न चुरा ले |
इसलिए तो छिपाती हूँ अपने चाँद का चेहरा ||

आर के रस्तोगी
गुरुग्राम (हरियाणा)

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 239 Views
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