चाँद में भी दाग होता है
वक़्त भी अजीब उलझनें देकर चला जाता है कभी जाति, धर्म, सम्प्रदाय के नाम पर तो कभी प्राकृतिक घटनाओं के नाम पर और कभी कभी मानवीयकृत आपदाओं के नाम पर।
आदमी भी आजकल ‘चाँद’ बनकर रह गया है जो कभी सम्पूर्ण दिखाई ही नहीं देता पता नहीं ऐसा क्यों है, वो इसलिए शायद क्योंकि हर व्यक्ति अपने स्वयं के हित के लिए अपने कर्त्तव्यों को भूल रहा है जैसे कि वो बिल्कुल अंजान हो और उसे कुछ नहीं आता है।
अगर वो दिखाई भी देने लगे तो भी उसमें कुछ न कुछ अधूरा सा अवश्य लगता है बस यही अधूरापन उसके सारे क्रियाकलापों का एहसास दिला देता है कि हर व्यक्ति में कुछ न कुछ दाग होता है जिसे हम आज भी अनदेखा कर देते हैं वो अनदेखा उसके कर्मों के अनुसार ही किया जाता है , जैसे कि – “चाँद”
चाँद भी अजीब उपहार है प्रकृति का जो सभी के हिस्से में बराबर है लेकिन वो निर्भर बांटने वाले के ऊपर करता है कि वो सबको समान हिस्सा देकर अपना हिस्सा कैसे संभाल पाता है।
अगर चाँद को ही देखा जाये तो चाँद कुछ दिनों तक ही अपना आकार लेता है और जब अपना पूर्ण आकार ले लेता है तभी कुछ दिनों के लिए हमेशा की तरह गायब हो जाता है जैसे पता नहीं क्या हुआ।
बस यही एक उलझन चाँद पर अनेक अंकुश लगाती है यह भी एक दाग है जिसका महत्व आज तक कोई समझ नहीं पाया है जैसे आज के माहौल में हर व्यक्ति को एक सफल व्यक्ति बनने के लिए अपनी स्वयं की इच्छाओं को किसी दूसरे व्यक्ति के सहारे गिरवीं रखनी पडेंगी तभी वह कुछ उपल्बधियों को छू पायेगा।
अन्यथा वह कभी भी अपनी मंज़िल तक नहीं पहुँचेगा और राहों ही राहों में गुमराह होता हुआ फिरता रहेगा बस यही है कि – “चाँद में भी दाग होता है”