*चाँद : कुछ शेर*
चाँद : कुछ शेर
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कभी मैं सोचता हूँ चाँद कितना खूबसूरत था
अमावस आते-आते खो दिया इसने मगर सब कुछ
सफर यह पूर्णमासी से अमावस तक का क्या कहने!
तुम्हारी हैसियत घटती है, लेकिन मुस्कुराते हो
किसी दिन चाँद देखोगे अमावस्या में डूबेगा
तुम्हारे पास होगी याद बिखरी चाँदनी की बस
तुम्हें देखा था हमने चाँद तब जब पूर्णमासी थी
किसे मालूम था हम तुमको खो देंगे अमावस तक
अभी तो पूर्णमासी है, न सीधे मुँह से बोलेगा
अमावस आएगी तो चाँद से पूछेंगे-“कैसे हो ?”
हजारों साल से किस्सा अमावस और पूनम का
हजारों साल से यह दूज का चंदा निकलता है
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रचयिता :रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा रामपुर उत्तर प्रदेश
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