चाँदनी ( घनाक्षरी छंद)
मनहरण घनाक्षरी छंद
चाँदनी
काली काली मावस सी,सिर सदा छाई रही,
पर अब आ गई है, गोरी गोरी चाँदनी।
चाहते नहीं थे आए, पर वह खुद आई,
धीरे-धीरे चुपके से चोरी चोरी चाँदनी।
जिसके उजाले में ही जिंदगी तमाम कटी,
छोड़ साथ चली गई, भोरी भोरी चाँदनी।
प्रीत गीत देख जिसे गाने का न मन करे,
कितनी भी चमके है, कोरी कोरी चाँदनी।
2
चार पांच घरों में ही,बरसा रही है चाँदी,
लगता है उन्हीं के करीब हुई चाँदनी।
देखने तरस गये, नहीं देखने को मिली,
हमारा तो बिगड़ा नसीब हुई चाँदनी।
कहीं कुछ कहीं कुछ, कुछ ऐसी कुछ वैसी,
आते आते पास में , अजीब हुई चाँदनी।
खेत में किसान के न,एक भी किरण पड़ी,
लटकने ईसा का सलीब हुई चाँदनी।
3
सबने ये सोचा इसे पाकर मिलेगा सुख,
लोक लुभावन वाली शैली हुई चाँदनी।
थी तो साफ स्वच्छ पर,काली घटाओं में घिरी,
दिनों दिन दिनों दिन, मैली हुई चाँदनी।
पाकर पावन परिवेश सबकी पसंद,
दूर दूर तक भारी फैली हुई चाँदनी।
कहाँ से कहाँ फैली है, पता नहीं चलता है,
जैसे किसी चुनाव की,रैली हुई चाँदनी।
4
मैंने तो किया है प्यार, और सदा गीत गाये,
मुझसे ही दूर जाके,पिनकी है चाँदनी।
चलाने वाले किसी के इशारों पै चला रहे,
समझना कठिन है, किनकी है चाँदनी।
नभ के सभी तारों ने दिया सहयोग पूरा,
यह मान बैठे बस,इनकी हैं चाँदनी।
किसी की हमेशा नहीं, इनकी कहाँ रहेगी,
सब जानते हैं चार,दिन की है चाँदनी।
5
अवधपुरी में राम,लला का पूजन करे,
काशी जी में जाय शिव,को मनाये चाँदनी।
मथुरा में मुरली बजाये मनमोहन तो,
यमुना किनारे रास भी रचाये चाँदनी।
सरिता सरोवर के तट की बढ़ाये शोभा,
सागर में भी बड़ा उछाह लाये
चाँदनी।
चंपा रातरानी फूले,फूले ब्रम्हकमल भी,
पर चोर को कभी भी, नहीं भाए चाँदनी।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
7 /5/23