चश्मा साफ करना चाहिए
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कुछ पढ़ने से पहले
चश्मा साफ कर लेना चाहिए।
कुछ का कुछ ‘यूं ही’,
ऐसे ही नहीं पढ़ देना चाहिए।
शब्द बदलते नहीं
उसके अर्थ बदल जाते हैं।
प्राय: विशिष्ट सोच के साँचे में
ढल जाते हैं।
पगडंडी भी रास्ते हैं
रास्ते ही रहने देना चाहिए।
पग-पग चलकर भी
मंज़िलें मिलती हैं दोस्त
इन्हें भी चलने देना चाहिए।
शब्द वहाँ नहीं हैं जहां लिखे हैं हमने।
व्याप्त है ब्रह्मसर में, तत्पर पिघलने।
शब्द की शपथ, शब्द प्रेत है।
उड़कर समस्त जगत में पहुंचे
ऐसा यह कण और रेत है।
नि:शब्द शब्दों के अर्थ हैं।
शब्द नि:शब्द भी होते आये हैं।
पढ़ना आना चाहिए।
वृक्ष के पत्ते,फूल,फल, तने और टहनियाँ;
सबकी है अपनी अद्भुद् कहानियाँ।
इन कहानियों में शब्द ही तो है
तुम्हारी कथाएँ बनाने के लिए।
जगत का हर जुगत
जुगत का हर तत्व
तत्व का हर क्षण
निर्मित शब्दों से।
स्वर के संयोजन से शब्द
बनते हैं।
अपना विज्ञान कहते हैं।
सृष्टि के ज्ञान की कथा कहते हैं।
इसलिए पढ़ने के पूर्व
चश्मा साफ करना चाहिए।
अर्थ इनके छाप देना चाहिए।
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अरुण कुमार प्रसाद 28/6/22