चलो , फिर करते हैं, नामुमकिन को मुमकिन ,
चलो , फिर करते हैं, नामुमकिन को मुमकिन ,
साज़िशों की औकात ही क्या,
जो हमें अब रोक ले।
जब बात खुद को बताने
और जताने की है,
तोआंधियों और बरसातों में भी ,
उम्मीदों का दिया पुरज़ोर जलाएंगे।।
– अतुल मिश्र
चलो , फिर करते हैं, नामुमकिन को मुमकिन ,
साज़िशों की औकात ही क्या,
जो हमें अब रोक ले।
जब बात खुद को बताने
और जताने की है,
तोआंधियों और बरसातों में भी ,
उम्मीदों का दिया पुरज़ोर जलाएंगे।।
– अतुल मिश्र