चलो अब गाँव चलते हैं
जहाँ सबके दिलों में प्रेम के हीं दीप जलते हैं।
मटर सरसो के फूलों पर जहाँ भँवरे मचलते हैं।
यहाँ की मखमली बिस्तर से सुंदर गाँव की माटी।
शहर में जी नहीं लगता, चलो अब गाँव चलते हैं।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य’
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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