चली आओ सनम
****चली आओ सनम****
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चली आओ सनम बाँहों में,
समा जाओ लिपट सांसों में।
हमीं हैं आपके सुन लो तुम,
खड़े कब से अथक राहों में।
कली से फूल खिलते जैसे,
छिड़ी मीठी लगन बागों में।
अधूरा ख्वाब पूरा होगा,
नज़ारे ढूंढ़ना बातों में।
चला आया यहाँ मनसीरत,
मिलेंगे अनसुनी रातों में।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)