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23 Feb 2024 · 1 min read

चलते-फिरते लिखी गई है,ग़ज़ल

चलते-फिरते लिखी गई है,ग़ज़ल
खून में इस तरह घुली है,ग़ज़ल
मैं नवाज़ी गई हूँ जब-जब भी
मुझसे आ के गले मिली है, ग़ज़ल
शाम की तरह मखमली है ,ग़ज़ल
सुबह के ओस में धुली है,ग़ज़ल
तेरे मिसरों के शहर में जानां
मेरी खोई हुई गली है,ग़ज़ल

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