चलते-फिरते लिखी गई है,ग़ज़ल
चलते-फिरते लिखी गई है,ग़ज़ल
खून में इस तरह घुली है,ग़ज़ल
मैं नवाज़ी गई हूँ जब-जब भी
मुझसे आ के गले मिली है, ग़ज़ल
शाम की तरह मखमली है ,ग़ज़ल
सुबह के ओस में धुली है,ग़ज़ल
तेरे मिसरों के शहर में जानां
मेरी खोई हुई गली है,ग़ज़ल