चलतें चलों
अंबर जो झूका, लहरें जो रूका
रूक जाएंगे ये क़दम एक रोज
चलतें चलों, तुम चलतें चलों
होगा एक रोज भोर
जलते ही उगना, जलते ही डूबना
सूरज का हैं नित्य काम
शीला भी घिसकर टूट जाते हैं
अगर निरंतर करें हम प्रयास
चलतें चलों ,तुम चलतें चलों
होगा एक रोज भोग
अंधेरों से ना तुम डरों,
खुद से ना यूं तुम हारों
मन के प्रबलता में है सूरज, चांद छूपा
जो तूफ़ानों में डटे रहे, देते हैं साथ उसका ख़ुदा
चलतें चलों, तुम चलतें चलों
होगा एक रोज भोर
इस जिंदगी का क्या,
आज है तो कल ना हैं
दो मिठीं बोल में दुनिया रंग जवां हैं
जो जीतकर हार जाएं दोस्तों के वास्ते, वहीं दोस्ती सच्चा हैं
वहीं इरादा पक्का है
चलतें चलों, तुम चलतें चलों
होगा एक रोज भोर
जोश में जो होश ना खोए
अपनें इरादों से जो ना डगमगाए
वो चीर देते हैं समुद्र का सीना
वो पूरा करते हैं अपना हर एक सपना
चलतें चलों तुम चलतें चलों
होगा एक रोज़ भोर
नितु साह(हुसेना बंगरा)