चलता ही रहा
चलता ही रहा
निरंतर, अविरल
राह ए जिंदगी में
लड़ता रहा मुश्किलों से,
अपनों के, ग़ैरों के तानों से.
कभी लड़ा वक़्त से
कभी बहलाया फुसलाया
ख़ुद को, मन को. जीवन को
थक भी गया कभी,
पर हार नहीं मानी,
उठा फ़िर…
चल पड़ा जीवन पथ पर
अकेला, तन्हा उम्र भर
अपने अकेलेपन के साथ
कभी हौसले के साथ
सुस्ता लिया कभी,
और चल पड़ा,उमंग,उत्साह और
नयी ऊर्जा के साथ..
एक नयी मंजिल, एक नयी राह
वही अकेला मैं, ख़ुद के साथ…!!!!
हिमांशु Kulshreshtha