चलकर खुद चंद आया है
***चलकर खुद चाँद आया है***
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दर पर चल खुद ही चाँद आया है,
तब से दिल पर उन्माद छाया है।
देखो तो पल-भर तुम उठा नजरें,
झोला भर कर उपहार लाया है।
फूलों से बढ़-कर है हसीं मुखड़ा,
प्यारी बाहों का हार पाया है।
देखा उसने पल-भर पलटकर तो,
चढ़ते यौवन का भार ढाया है।
मनसीरत की आँख का तारा,
कंचन सी सुंदर धार काया है।
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सुखविन्दर सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)