चरित्र
क्या सफेदी अपने आप में दिखाई ना देने वाली चीज है ?
या फिर लोग नहीं देखते इसकी मुझे खीझ है.
या शायद मेरे ऐसा चिलाने में भी कोई भेद है ?
कि देखो मेरी चादर सबसे सफ़ेद है.
शायद यह एक असफल कोशिश है चादर के दाग ढांपने की,
यही तो वजह है बार बार यह राग अलापने की.
फिर भी अपने आप में तो संतोष है,
कि इमेज को कायम रखने का तो होश है.
कर्मों से ना सही बातों से ही सही,
प्रयत्न तो जारी है कहीं न कहीं.
मैं और मेरे जैसे लोग,
कैसा पाले हैं वहम का यह रोग.
अपने आप को मानना ज्ञान की परिभाषा,
क्या नहीं यह दिल को देना झूठी दिलासा ?
यह तो सरासर आत्म केंद्रित होना है,
सरासर ईश्वर प्रदत्त संवेदनाओं का खोना है।
अच्छा हो जुबान नहीं कर्म बोलें,
उसी आधार पर हमारे चरित्र को लोग तोलें.
शायद इसी में कर्म दर्शन का बीज है,
चरित्र तो दूसरों के आंकने की चीज है.
खजान सिंह नैन