चरण पखारे चांदनी, दिनकर भरता ओज
चरण पखारे चांदनी, दिनकर भरता ओज
जा रहा है एक पथिक, करने को नित खोज
हर दिवस की यही कथा, यह जीवन का सार
वो पाते मंजिल जहां, जो चलते हैं रोज।।
सूर्यकांत
चरण पखारे चांदनी, दिनकर भरता ओज
जा रहा है एक पथिक, करने को नित खोज
हर दिवस की यही कथा, यह जीवन का सार
वो पाते मंजिल जहां, जो चलते हैं रोज।।
सूर्यकांत