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9 Aug 2021 · 1 min read

चयन

हम भगवान की मूर्तियों की दुकान में खड़े थे। वहां तरह – तरह की मूर्तियां थी, साधारण भी और बेहद कीमती भी।
हमें एक अच्छी मूर्ति का चयन करना था, यानी हमेंएक ‘ अच्छे भगवान ‘ की तलाश थी ।हम सभी मूर्तियों पर निगाह घुमाते जा रहे थे। कुछ मूर्तियों के कपड़े,गहने , श्रृंगार अद्भुत थे।
हम सभी का बारी बारी से कीमत पूछ रहे थे । हमें लगता, दुकानदार किसी – किसी मूर्ति की बहुत ज्यादा कीमत बता रहा है
तभी एक साधारण सा आदमी वहां आया।बेहद साधारण मूर्ति पर उसकी दृष्टि रुक गई। उसने दुकानदार से कहा , ‘ इस मूर्ति में भगवान का स्वरूप बड़ा मनोहारी है, मुझे यह दे दो।’
दुकानदार ने जो कीमत बताई,उस व्यक्ति न तुरंत वह कीमत चुकाई और मूर्ति लेकर चला गया ,हमे उस व्यक्ति द्वारा इतनी जल्दी में मूर्ति का चयन कर ले जाना अच्छा नहीं लगा। काफी समय बीत गया, मगर हमारा चयन फाइनल नहीं हुआ ।हमने दुकानदार से कहा, ‘ तुम्हारे पास मूर्तियां तो बहुत हैं लेकिन बात कहीं जम नहीं रही। हमें हैरानी है कि वह व्यक्ति इतनी जल्दी फैसला कैसे कर गया ।
इस पर दुकानदार ने बड़ा सीधा सा जवाब दिया; ‘
‘ बिटिया , आपमें और उसमे सिर्फ इतना फर्क दिखा कि वह अपने मनोभाव के अनुसार भगवान को लेने आया था और उन्हें लेकर चला गया । आपका काम कठिन है क्योंकि आप अपनी हैसियत के अनुसार सिर्फ मूर्ति लेने आए है।

किसी ने सच कहा है मानो तो भगवान
वरना पत्थर को हि पूजते हैं ।

✍️ रश्मि गुप्ता@ Ray’s Gupta

Language: Hindi
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