चमेली के औषधीय गुणों पर आधारित 51 दोहे व भावार्थ
चमेली के औषधीय गुणों पर आधारित 51 दोहे व भावार्थ
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**खंड अ*
परिचय, उपयोग एवं फायदे
1-
बेल चमेली की मिले, भारत में हर ओर।
घर, मंदिर या वाटिका, बचे न कोई छोर।।
(चमेली एक बेल है जो भारत में सर्वत्र पाई जाती है। इसे घरों, मंदिरों, वाटिकाओं में हर जगह लगाया जाता है)
2-
पुष्पों में सौंदर्य है, खुशबू है भरपूर।
जो खुशबू करती सदा, अवसादों से दूर।।
(इसके फूलों का सौंदर्य और इसकी गंघ हमें अवसादों से दूर ले जातीं हैं।)
3-
इसका बनता तेल है, अरु बनता है इत्र।
करता है उपकार यह, बनकर सबका मित्र।।
(इसका तेल और इत्र बनता है ये दोनों सामग्रियां बहुत उपयोगी होतीं है।)
4-
रंगों के आधार पर, करते हैं हम भेद।
पुष्पों की दो जातियाँ, पीली और सफेद।।
(इसकी दो जातियाँ होतीं हैं पहली पीली और दूसरी सफेद।)
5-
जिसका रंग सफेद है, गुण की है जो खान।
उसका करने जा रहे, हम अब तो गुणगान।।
(यहाँ हम सफेद पुष्प वाले चमेली के गुणों का गुणगान करने जा रहे हैं।)
6-
औषधि के उपयोग से, मिलते लाभ जरूर।
कफ, पित का करता शमन, और वात को दूर।।
(कफ, पित और वात के रोगों में इसका उपयोग अत्यंत लाभकारी है।)
7-
अगर लगी हो चोट या, हुआ कहीं हो घाव।
वैद्य लोग देते सदा, इसका हमें सुझाव।।
(चोट लगने पर या घाव होने पर वैद्य लोग हमें इसके उपयोग का सुझाव देते हैं।)
8-
यौन शक्ति में यह करे, आशातीत सुधार।
कर्ण रोग, मुख रोग का, करता है संहार।।
(यौन शक्ति की क्षीणता में इसका उपयोग आशातीत लाभ पहुँचाता है। कान और मुँह के रोगों में भी उपयोगी है।)
9-
मस्तक का हो दर्द या, मासिक का हो रोग।
चर्म रोग अरु कुष्ठ में, है इसका उपयोग।।
(सिर दर्द, मासिक धर्म, चर्म रोग और कुष्ठ रोग में यह उपयोगी है।)
10-
यह कम करता है जलन, ज्वर को करता मंद।
फटना सुनें बिवाइ का, कर देता है बंद।।
(जलन, बुखार को कम करता है। बिवाई फटने की बीमारी को समाप्त कर देता है।)
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मुख रोग
11-
इसका क्वाथ बनाइये, पत्ते मुट्ठी एक।
मुँह के छालों के लिए, बहुत दवा है नेक।।
(इसके पत्तियों (मात्रा 25 से 50 ग्राम) का काढ़ा मुँह के छालों के लिए बहुत उपयोगी है।)
12-
अगर मसूड़ों में हुआ, हो कोई भी रोग।
इस काढ़े का तो वहाँ, भी होता उपयोग।।
(अगर दाँत के मसूड़ों में कोई तकलीफ है तो भी यह काढ़ा फायदेमंद है।)
13-
काढ़े से कुल्ला करें, सुबह दोपहर शाम।
मिल जाता है साथियों, बहुत जल्द आराम।।
(दिन में तीन बार इस क्वाथ/काढ़े से कुल्ला करने पर उपरोक्त परेशानियों में लाभ होता है।)
14
इसके पत्र चबाइए, अगर हुए ये कष्ट।
सच माने इस कार्य से, हो जाते हैं नष्ट।।
(इसकी पत्तियों को चबाने से भी उपरोक्त बीमारियों में लाभ होता है।)
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चेहरे की सुंदरता
15-
कुछ फूलों को पीस लें, और लगाएं रोज।
छटती मुख की कालिमा, बढ़ जाता है ओज।।
(कुछ फूलों को पीसकर चेहरे पर लगाने से चेहरे की कांति बढ़ जाती है।)
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पक्षाघात
16-
घातक दोनों रोग हैं, अर्दित, पक्षाघात।
मूल पीसकर लेपिये, बन जाएगी बात।।
(पक्षाघात व अर्दित रोग में इनकी जड़ को पीसकर लेप लगाने से लाभ होता है।)
17-
इन रोगों में कारगर, होता इसका तेल।
मालिश करिये अंग पर, कसना अगर नकेल।।
(प्रभावित अंग पर इसके तेल से मालिश करने पर लाभ होता है।)
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उदर कृमि
18-
इक तोला दल पीसिये, दें पानी में डाल।
हैं कीड़े यदि पेट में, उनका है यह काल।।
(दस ग्राम पत्तों को पीसकर जल में मिलाकर पीने से पेट के कीड़े निकल जाते हैं।)
19-
कृमिनाशक होता सुनें, इन पत्तों का क्वाथ।
कृमि से पीड़ित आप हों, यह देता है साथ।।
(इसके पत्तों से बना क्वाथ कृमिनाशक होता है।)
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वायु शूल
20-
तेल गर्म कर डालिए ,उसमें रूई आप।
वायु शूल में नाभि पर,रखें दूर हो ताप।।
(चमेली का तेल गरम कर लें उसमें रूई डुबोकर नाभि पर रखने से वायु शूल में लाभ होता है।)
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उदावर्त
21-
जड़ का काढ़ा दे सदा, उदावर्त में काम।
जड़ की मात्रा हो सुनें, दस से दूना ग्राम।।
(चमेली के 10 से 20 ग्राम जड़ का काढ़ा बनाकर पीने से उदावर्त में लाभ होता है।)
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नपुंसकता
22-
फूलों को लेकर सुनें, मात्रा में दस बीस।
कुचलें या रख लें उसे, हल्का हल्का पीस।।
(दस बीस फूलों को लेकर उसे कुचलें या हल्का पीस लें।)
23-
रख लें जो यदि नाभि पर, कटि पर बाँधें यार।
काम वासना तीव्र हो, छटते मूत्र विकार।।
(कुचले पुष्पों को नाभि पर रखने व कमर पर बाँधने से काम वासना बढ़ती है और पेशाब खुल कर आता है।)
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मासिक धर्म
24-
इससे होता फायदा, मिटते दुख हर बार।
कष्ट माह का दूर हो, मासिक रोग सुधार।।
(इसके प्रयोग से मासिक धर्म के दौरान होने वाले कष्ट में लाभ होता है।)
25-
दो तोले पंचांग औ, दुई पाव जल डाल।
चौथाई बचने तलक, देना उसे उबाल।।
(बीस ग्राम चमेली के पंचांग को आधा लीटर पानी में तबतक उबालें जबतक कि वह एक चौथाई रह जाय।)
26-
बने हुए इस क्वाथ को, पीयें प्रातः शाम।
तिल्ली मासिक रोग में, मिले बहुत आराम।।
(इस क्वाथ का सुबह शाम सेवन करने से तिल्ली रोग व मासिक धर्म की बीमारी में बहुत आराम मिलता है।)
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उपदंश
27-
क्वाथ बनायें पत्र का, मानें अगर सुझाव।
धोने से उपदंश का, मिटने लगता घाव।।
(पत्तों का क्वाथ बनाकर उपदंश के घाव को धोने से लाभ होता है।)
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बिवाई
28-
अगर बिवाई रोग से, पीड़ित हैं श्री मान।
पत्तों का रस फेटना, इसका सरल निदान।।
(यदि आपको बिवाई की समस्या है तो चमेली के पत्तों का रस लगाने से लाभ होता है।)
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व्रणरोपण
29-
घावों को धोएं अगर, लेकर इसका क्वाथ।
जल्दी भरता घाव यह, दुख में देता साथ।।
(यदि घावों को इसके पत्तों के क्वाथ से धोया जाय तो घाव जल्दी भरता है।)
30-
पत्ता शोधित तेल लें, अरु पत्तों को कूट।
इनका करें प्रयोग तो, दुख जाता है छूट।।
(पत्तों से शोधित तेल और पत्तों को कूट पीसकर लगाने से यह रोग समाप्त होता है।)
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कुष्ठ
31-
यदि किसी को है हुआ, कुष्ठ रोग का कष्ट।
काढ़ा इसके मूल का, पीने से हो नष्ट।।
(इसके जड़ का काढ़ा पीने से कुष्ठ रोग में लाभ होता है।)
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चर्म रोग
32-
इसका तेल लगाइये, खुजली हो या खाज।
चर्म रोग का काल है, जानें इसको आज।।
(इसका तेल चर्म रोगों पर बहुत कारगर है।)
33-
इसका लेप लगाइये, पीस पीस कर फूल।
चर्म रोग की अग्नि को, कर देता निर्मूल।।
(इसके फूलों को पीसकर लेप लगाने से चर्म रोगों की जलन समाप्त होती है।)
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खण्ड ब
चमेली के साथ अन्य औषधियों का उपयोग
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कर्ण रोग
34-
अगर दर्द बेजोड़ हो, या बहते हों कान।
इसके बहुत उपाय हैं, सुनें लगाकर ध्यान।।
(कान दर्द या कान बहने के उपचार हेतु चमेली के निम्नवत उपयोग हैं। आप ध्यान पूर्वक सुनें।)
35-
ग्राम शतक तिल तेल में, पत्ते बट्टे पाँच।
चूल्हे पर रख दें उसे, अरु दे दें फिर आँच।।
(सौ ग्राम तिल के तेल में बीस ग्राम चमेली के पत्ते उबालें।)
36-
ठंडी होने पर सुनें, डालें बूँदें रोज।
नमन करूँ उस व्यक्ति को, जिसकी है यह खोज।।
(तेल जब ठंडी हो जाय तो कान में उसकी एक या दो बूँद डालें। मैं उस व्यक्ति को नमन करता हूँ जिसने यह खोज की है।)
37-
संग एलुआ, तेल को, डालेंगे यदि आप।
कानों की खुजली करे, अरे बाप रे बाप।।
(चमेली के तेल में एलुवा मिलाकर कानों में डालने से खुजली ठीक होती है।)
38-
पत्तों का रस साथ में, दूना हो गोमूत्र।
कर्ण शूल में साथियों, काम करे यह सूत्र।।
(चमेली के पत्तों के रस में दो गुना गोमूत्र मिलाकर कानों में डालने से कान के दर्द में आराम मिलता है।)
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सिर दर्द
39-
अच्छा एक उपाय है, दर्द करे यदि माथ।
त्रय पत्रों को पीस लें, गुल रोगन के साथ।।
(यदि आपके सिर में दर्द हो तो उसका एक उपाय है, पहले तीन पत्तों को गुल रोगन में पीस लें।)
40-
डालें बूँदें नाक में, हो जाता आराम।
जब भी सिर का दर्द हो, कर लेना यह काम।।
(नाक में इसकी दो दो बूँदें डालें। इससे आराम मिलेगा।)
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आँख की फूली
41-
फूलों की कुछ पंखुड़ी, थोड़ी मिश्री आप।
खरल करें फिर आँख की, फूली पर दें छाप।।
(चमेली के फूल की कुछ पंखुड़ियां (5 या 6) लेकर थोड़ी मिश्री के साथ खरल में महीन पीस लें। फिर आँख की फूली पर छाप दें।)
42-
कुछ दिन तक ऐसा करें, मिट जाएगा रोग।
विकट समस्या के लिए, उत्तम है यह योग।।
(कुछ दिनों तक प्रयोग करने पर रोग समाप्त हो जाता है। इस विकट बीमारी के लिए यह उत्तम योग है।)
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नपुंसकता
43-
पल्लव औ गुल तेल में, गरम करें भरपूर।
यौन शक्ति की क्षीणता, मालिश से हो दूर।।
(चमेली के पत्तों और फूलों को तेल में पकाकर मालिश करने से नपुंसकता/यौन क्षीणता में लाभ होता है।)
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उपदंश
44-
पत्रों का लेकर स्वरस, दो तोला अनमोल।
मिली सवा सौ ग्राम दें, राल चूर्ण को घोल।।
(बीस ग्राम पत्तों का स्वरस और सवा सौ मिली ग्राम राल के चूर्ण को आपस में मिला लें।)
45-
पीने से इस घोल को, नित्य सुबह दिन बीस।
रोग नाश उपदंश का, जाने लगती टीस।।
(सुबह सुबह इस घोल को बीस दिन तक पीने से यह रोग ठीक हो जाता है।)
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कुष्ठ
46-
नव पल्लव सँग इंद्र जौ, मूल कनेर उजाल।
ले करंज फल साथ में, दारू हल्दी छाल।।
(चमेली की नई पत्तियों के साथ इंद्र जौ, सफेद कनेर की जड़, करंज फल और दारू हल्दी की छाल लें।)
47-
इनको पीसें साथ में, और करें उपयोग।
धीरे धीरे ही सही, जाता है यह रोग।।
(इनको एक साथ पीस कर लेप लगाने से कुष्ठ रोग में लाभ होता है।)
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ज्वर
48-
पात चमेली आँवला, नागर मोथा संग।
क्वाथ यवासा दीजिये, शीतल होते अंग।।
(चमेली के पत्ते, आँवला, नागर मोथा व यवासा का काढ़ा देने से बुखार में आराम मिलता है।)
49-
साथ मिला गुड़ दीजिये, दिन में दो दो बार।
लौट पुनः आता नहीं, घटता रोज बुखार।।
(काढ़े में गुड़ डालकर दिन में दो बार देने से बुखार घटने लगता है।)
चमेली के अधिक प्रयोग से होने वाले नुकसान
50-
ज्यादा सेवन से यही, होता है नुकसान।
सिर में होता दर्द है, देना पड़ता ध्यान।।
(चमेली के अधिक प्रयोग से सिर में दर्द की शिकायत हो सकती है।)
51-
लेकर तेल गुलाब का, डालें जरा कपूर।
शीतलता से दर्द को, कर देता है दूर।।
(इसे ठीक करने के लिए गुलाब का तेल व कपूर का प्रयोग करना चाहिए।)
दोहे- आकाश महेशपुरी