चमकेगा सूरज पुन:
होती खंडित अनगिनत, ख्वाबों की बारात !
तब जा कर आता कहीं,अगला नवल प्रभात !!
भले ग्रहण है आज यह, कुछ पल ठहर रमेश ।
चमकेगा सूरज पुन:,…………देखेगा ये देश !!
रमेश शर्मा.
होती खंडित अनगिनत, ख्वाबों की बारात !
तब जा कर आता कहीं,अगला नवल प्रभात !!
भले ग्रहण है आज यह, कुछ पल ठहर रमेश ।
चमकेगा सूरज पुन:,…………देखेगा ये देश !!
रमेश शर्मा.