चन्द श़ेर
ये मेरी नजरों का धोखा है या दिल का कुस़ूर है ।
जो उनकी बेवफाई पर भी दिल उन्हें बेवफ़ा नहीं मानता ।
उनके लुटने का तमाशा हम देखते रहे ।
पता नही हम कब खुद एक तमाशा बन कर रह गए।
उनके इश्क में हमें जमाने ने इस कदर रुस़वा किया कि बेख़ुद होकर हम अपनी हस्ती तक भुला बैठे।
कफ़स में कैद है मेरी बुलबुल और हममें उसकी आज़ादी के लिए बग़ावत की हिम्म़त नही।
जो हमारे हम़द़र्द थे कल तल़क, वो आज हमारे स़रद़र्द बन गए हैं ।
दोस्तों के फ़रेब बार बार खाकर हम दोस्ती करने से डरने लगे हैं ।
हाथों की लक़ीरों और पेश़ानी मे क्या खोजता है उसे ? तेरा म़ुस्तक़बिल तो तेरी द़िली लगन और श़िद्दत में बसा है।
हक़ीकत हमेशा कड़वी होती है । क्योंकि उसे झूठ की चाश़नी मे लपेटकर पेश़ नही किया जाता।